
भारतीय रुपये ने एक बार फिर दबाव झेलते हुए डॉलर के मुकाबले नया स्तर छू लिया है। मंगलवार को रुपया 87.80 तक कमजोर हो गया, जो अब तक का रिकॉर्ड नज़दीक माना जा रहा है। इस गिरावट के पीछे मुख्य वजह अमेरिकी प्रशासन की ओर से 50% टैरिफ की पुष्टि मानी जा रही है। इस फैसले का असर सीधे तौर पर भारतीय निर्यात और विदेशी निवेश धारणा पर दिखाई दे रहा है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि जब किसी देश पर ऊँचे आयात शुल्क लगाए जाते हैं, तो वहां से जाने वाला माल महंगा हो जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि विदेशी खरीदार ऑर्डर घटा देते हैं। यही वजह है कि निवेशक रुपये से दूरी बनाते हुए सुरक्षित विकल्प डॉलर की ओर बढ़ जाते हैं। इसी कारण रुपये की मांग कम और डॉलर की मांग ज्यादा बढ़ने लगती है।
रुपये की कमजोरी का असर आम लोगों तक भी पहुँचता है। आयातित सामान जैसे पेट्रोल-डीज़ल, इलेक्ट्रॉनिक आइटम और दवाइयाँ महंगी हो सकती हैं। इसके साथ ही विदेश यात्रा और विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों का खर्च भी बढ़ सकता है।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ इसे लंबे समय तक टिकने वाली स्थिति नहीं मानते। उनका कहना है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ज़रूरत पड़ने पर बाज़ार में हस्तक्षेप कर सकता है। साथ ही, सरकार भी कूटनीतिक स्तर पर बातचीत के ज़रिए इस टैरिफ संकट का हल ढूंढने की कोशिश करेगी।
फिलहाल, रुपये की कमजोरी और अमेरिकी टैरिफ की पुष्टि ने भारतीय बाज़ार में अनिश्चितता बढ़ा दी है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि रुपये का स्तर स्थिर होता है या और नीचे जाता है।