भारत ने इस बार नेशनल स्पेस डे बड़ी ही गर्व और उत्साह के साथ मनाया। यह दिन न सिर्फ देश की अंतरिक्ष उपलब्धियों को याद करने का अवसर है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को विज्ञान और नवाचार की ओर प्रेरित करने का भी मौका है।
अगर हम पीछे मुड़कर देखें तो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत बेहद साधारण थी। 1960 के दशक में जब इसरो (ISRO) ने काम शुरू किया था, तब उसके पास न तो बड़े संसाधन थे और न ही आधुनिक तकनीक। उस समय छोटे-छोटे प्रयोग और सीमित साधनों से ही शोध किया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत और लगन ने दुनिया को दिखा दिया कि सपनों और दृढ़ संकल्प के दम पर कुछ भी संभव है।
आज इसरो न सिर्फ उपग्रह प्रक्षेपण में दुनिया के अग्रणी संस्थानों में से एक है, बल्कि चंद्रमा और मंगल जैसे मिशनों के जरिए उसने अंतरिक्ष अनुसंधान में भी नई ऊँचाइयाँ हासिल की हैं। चंद्रयान और मंगलयान जैसी उपलब्धियों ने भारत को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दी है।
इस मौके पर प्रधानमंत्री और कई प्रमुख वैज्ञानिकों ने लोगों को संबोधित किया और युवाओं को विज्ञान और अंतरिक्ष अनुसंधान में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। उनका कहना था कि आने वाला भविष्य तकनीक और नवाचार का है, और भारत इस क्षेत्र में नेतृत्व करने के लिए पूरी तरह तैयार है।
नेशनल स्पेस डे हमें याद दिलाता है कि भारत का सफर कितना प्रेरणादायी रहा है—एक छोटे कदम से शुरू होकर आज वैश्विक अंतरिक्ष ताकत बनने तक।