
भारतीय रुपया लगातार चौथे दिन कमजोर होकर बंद हुआ है। सोमवार को रुपया 87.58 प्रति डॉलर के स्तर पर पहुँच गया। यह गिरावट मुख्य रूप से अमेरिकी टैरिफ को लेकर बनी अनिश्चितता और आयातकों की बढ़ती डॉलर डिमांड की वजह से देखने को मिली।
विशेषज्ञों का कहना है कि हाल ही में अमेरिका ने भारत समेत कई देशों पर नए व्यापार शुल्क लागू करने के संकेत दिए हैं। इसका असर विदेशी मुद्रा बाज़ार पर साफ दिख रहा है। आयातकों को डॉलर में अधिक भुगतान करना पड़ रहा है, जिसकी वजह से रुपया दबाव में है।
इसके अलावा, विदेशी निवेशक भी सतर्क रुख अपना रहे हैं। शेयर बाज़ार में हल्की बिकवाली और विदेशी पूंजी की निकासी ने भी रुपये को कमजोर किया है। वहीं, कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने अतिरिक्त दबाव डाला है क्योंकि भारत को तेल आयात पर ज्यादा खर्च करना पड़ता है।
हालांकि, रिज़र्व बैंक (RBI) समय-समय पर बाज़ार में हस्तक्षेप कर स्थिति को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि निकट भविष्य में रुपया 87–88 के दायरे में रह सकता है।
लंबी अवधि के निवेशकों के लिए यह उतार-चढ़ाव असामान्य नहीं है, लेकिन अल्पावधि में आयातकों और यात्रियों की लागत जरूर बढ़ सकती है।
कुल मिलाकर, रुपये की लगातार कमजोरी देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौती है, लेकिन आने वाले हफ्तों में फेडरल रिज़र्व और भारत सरकार के फैसलों से इसकी दिशा तय होगी।