
देश में होने वाले राष्ट्रीय आर्थिक सुधार शिखर सम्मेलन (National Economic Reform Summit) से पहले पर्यावरण संगठनों ने सरकार और नीति-निर्माताओं से मज़बूत प्रतिनिधित्व की मांग की है। इन समूहों का कहना है कि जब देश की आर्थिक दिशा तय की जा रही है, तो उसमें प्रकृति, पर्यावरण संरक्षण और हरित निवेश को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं का तर्क है कि आर्थिक विकास और पर्यावरण को एक-दूसरे का विरोधी मानने की सोच अब पुरानी हो चुकी है। आज दुनिया भर में “नेचर-बेस्ड इन्वेस्टमेंट” यानी प्रकृति पर आधारित निवेश को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह न केवल पर्यावरण की रक्षा करता है बल्कि रोजगार और नए आर्थिक अवसर भी पैदा करता है।
इन संगठनों ने यह भी कहा कि आर्थिक सुधारों की किसी भी बड़ी रूपरेखा में कड़े पर्यावरणीय नियम, कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण, और सतत विकास को शामिल करना बेहद ज़रूरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो भविष्य की पीढ़ियों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
समीक्षा करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि इन मांगों को नजरअंदाज़ करना मुश्किल होगा, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय चुनौतियाँ अब सीधे आम जनता की ज़िंदगी और अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं।
संक्षेप में, यह साफ है कि आने वाले शिखर सम्मेलन में केवल आर्थिक नीतियों की नहीं, बल्कि प्रकृति और विकास के संतुलन की भी बड़ी परीक्षा होगी।